Thursday, 27 March 2014

एक विडंबना देश की (सुरभी मिश्रा)


भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर विभिन्न प्रकार के जाति, धर्म, समुदाय के लोग मिल कर रहते है और इस एकजुटता की बुनियाद बनती है आदर्शवादिता से ।

   आदर्शवादिता की परिभाषा हमारे समाज मे हो रहे अच्छे और बुरे की परख से एवं मनुष्य की चेतना से उबर कर बनता है । हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता आदर्श से मिलकर बनी हुई होती है । मनुष्य अपना आदर्श स्वयं तय करता है, भला या बुरा पर आदर्शवादिता स्वयं मे एक सकरात्मक उर्जा का प्रवाह लेकर चलता है ।

इतिहास मे कई वीर योद्धा, वीरांगनाएँ एवं क्रांतिकारियों ने आदर्श के बल पर फतह हासिल की, वो आदर्श जिसके सहारे वे जीवन के कठिन परिस्थितियों का भी सामना कर गए पर आज हमारे युवा वही नैतिकता एवं आदर्शवादिताको भूलते जा रहे है, ज्ञान अर्जित करने पर भी मानव मूल्य का तिरस्कार कर रहे है और अपनी संस्कृति, संस्कार को सामाजिक बंधन मानकर आजादी की नई परिभाषा गढ़ रहे है ।

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आदर्शवादिता स्वयं के लिए नही, समाज के हित के लिए काम करता है, आदर्श पर चलने वाला समाज को जोड़ कर रखता है, एवं एकता का प्रतीक होता है, पर आज का नवयुवक समाज के लिए भ्रम और अपने लिए कर्म करता है । पहले के समय मे परिवार संगठित होकर रहताथा, जिससे की बच्चो एवं युवाओं को रिश्तों की मर्यादा, उसके महत्व का ज्ञान होता था और वे एक अच्छे आदर्शो पर चलकर समाज का हित करते थे पर अब इस बदलते हुए समाज ने रिश्तें की एकजुटता को बंधन का नाम दिया और टूटते रिश्ते को आज़ादी का । पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव कहे या आज के युवा का आत्मकेंद्रित स्वभाव, अब तो वो अपने परिवार तो क्या माता-पिता के साथ भी रहना पसंद नहीं करते । युवा तो क्या बच्चे भी बड़ो के पाँव छूना, उनका आदर करना भूल गए है।

आज के युवा का आदर्श स्वार्थ रह गया है। वो अपनी ही बनाई हुई दुनिया मे जीना चाहते है, वेक अप सिड जैसी मूवीज को देखकर खुद को सिड समझते है, जबकी वास्तविकता इन सबसे भिन्न होती है, समयानुसार सबकी परिस्थितियाँ अलग होती है ।

अजीब विडंबना है ये, कि जहाँ ज्ञान का अर्थ सोच को एक नई दिशा देना होता है वही पर आज की सोच दूसरे की सभ्यता से प्रभावित होकर बनी हुई होती है। आज का युवा अपने समाज के संस्कृति, सभ्यता को सहेजने के बजाय उसका तिरस्कार कर रहा है। उसे अब ना अपनी भाषा का ज्ञान है, ना अपने लोगो के दर्द का, बस याद है तो वो चकाचौंध रोशनी जिसे पाकर वो अपनी पहचान बनाना चाहता है परंतु स्वयं गुम हो जाता है । 


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