Sunday, 30 March 2014

अब हम मिलेंगे खिलाफ़त के मैदान में...



 अब हम मिलेंगे खिलाफ़त के मैदान में
जहाँ ज़ुल्मों की कब्र खोदी जायेगी
आसमान की फैली लालिमा के नीचे
तलवार-ए- कलम लाल करी जायेगी

हँसते हुए आयेंगे हम आशिक-ए-मिल्लत 
आवाज़ अब फिर ऊंची करी जायेगी
इंक़लाब की चाहत अब है सबके दिल में
फांसी के तख्तों पर कवितायें कही जायेंगी






पन्नों पर हम अब कुछ ऐसा लिखेंगे 
आग बहेगी और नारे जलेंगे
मौत तो तय है यहाँ हर किसी की
पर ऐसे लड़ने के मौके अब कभी ना मिलेंगे


अब हम मिलेंगे खिलाफ़त के मैदान में
जहाँ ज़ुल्मों की कब्र खोदी जायेगी
अब हम मिलेंगे खिलाफ़त के मैदान में...

एल. ग़ाज़ी


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