Sunday, 30 March 2014

क्या आपने कभी सोचा? ( अमितेश कुमार )

भारत एक विशाल देश है I इस देश की विडम्बना है की हम सब एक होते हुए भी सामजिक रूप से एक नहींI समाज में अलग-अलग विचार है और उसी विचारधारा पर हम चलते आ रहे हैं I दंगे-फसाद, बलात्कार, दुराचार, अत्याचार आदि अब मानो समाज का एक अटूट हिस्सा बन गए है I छुआछूत, ऊच-नीच, जातिवाद और संकीर्ण मानसिकता ने समाज को नर्क बना दिया है I अशिक्षा, निर्धनता, शोषण एवं और भी अमानवीय कुविचारों से समाज से समाज का तीन-चौथाई भाग पशुव्क्त जीवन जी रहा हैI

कहते हैं की बच्चे भगवान का रूप होतें है, लेकिन हमारे देश में ऐसे कई भगवान के स्वरूपों का जीवन अँधेरे में लुप्त हो रहा हैI सड़क हो, रेल की पटरी हो या फूटपाथ, हमें आये दिन ऐसे दरिद्र बच्चे दिखते है जिन्हें खुद अपना भावी जीवन धुंधला दिखाई पड़ता हैI स्वतंत्रता दिवस पर ये बच्चे सड़कों पर झंडे बेचते नज़र आते है जो खुद देश के छियासठ साल की आज़ादी के बाद भी अपनी आज़ादी से कोसों दूर हैI यही बच्चे जो हमारे भारतवर्ष का सुनहरा कल लिख सकते है आज कलम तक के फ़ासले को पार नहीं कर पा रहे हैं इन बच्चों का जीवन किस कदर शोषण व बुराई से घिर गया है इसकी हम सब केवल कल्पना ही कर सकतें हैंI यही बच्चे हमारे देश की धरोहर है जिनका जीवन आज बर्बादी के अँधेरे में गुम हो रहा है I वह प्रतिभा जिसे देश के काम आना चाहिए वह मजबूरन जुर्म की राह पर निकल पडी हैं.

मैं इस बात से भली भातिं वाकिफ हूँ कि मैं यहाँ कुछ नया नहीं बता रहा यह सब आप कई दफ़ा अख़बारों में पढ़ चुके है कईं बार खुद अपनी आँखों से देख चुके है परुन्तु प्रश्न यह उठता है की क्या आपने इन घटनाओ इन स्थितियों पे विचार किया है? क्या हमारा इन परिस्थितयों से यूँ मुह फ़ेर लेने से यह सब बंद हो जाएगा ?

जवाब हम सभी जानते है कभी भी ऐसे बच्चे को घूमते देख हम करुण दया का भाव तो प्रकट करते  है पर फिर दूसरे ही पल आगे बढ़ निकलते है. इस सामाजिक रुढ़िवादी मानसिकता ने हमें अन्दर से खोखला कर दिया है. सवाल उठाने का नहीं अब यह समय है चुनाव का की क्या हम देश का भविष्य उज्वल देखना चाहतें है या उसने अपनी आँखों सामने दम तोड़ते देखना चाहतें हैI

हमारे देश की सरकार जो “भारत निर्माण” की गाथा गाती फिर रही है, क्या उन्हें हमारे राष्ट्र की धरोहर का कुछ ख्याल है? आये दिन नए घोटालों के कालिख से दूषित ये सरकार हमारे आने वाले भविष्य के उज्वल बनाने का प्रयत्न करने में असमर्थ है यह सरकारी व्यवस्था की विफलता है की आज भी हर रोज़ लाखों बच्चे भूखे पेट हैं , अशिक्षित है और असामाजिक तत्वों के चुंगुल में फंसे हुए हैंI मुझे बेहद अफ़सोस इस बात का है की हम जानते हुए भी अनजान बने हुए तमाशा देख रहे हैंI हमारी आज़ादी आज सिर्फ अपनी सुविधाओं तक सीमित रह गई है. इन परिस्थितयों का निवारण हम और आप मिलकर ही कर सकतें है.

अब वो समय आ गया है की हम सब मिल कर एक क्रांति की आंधी लायें और समाज के इन सभी कूव्यवस्थाओं  को अपने प्रवाह में बहाकर साफ़ कर लें जायें.   


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