कभी कभी खामोश हो जाती है
तो कभी लाखों कहानिया सुनती है
कभी हर कदम पर नज़र आती है
तो कभी खो सी जाती है
ज़िन्दगी ...
कभी मनचाही मंजिल पाती है
तो कभी खुद ही मंजिल बनाती है
कभी एक रफ़्तार में चलती जाती है
तो कभी थम सी जाती है
ज़िन्दगी...
कभी आदर्शों को अपनाती है
कभी खुद आदर्श बन जाती है
कभी नफ़रत की रह अपनाती है
तोह कभी प्यार का आशियाँ बनती है
ज़िन्दगी ...
कभी मुश्किल राहों में उल्ल्झ्ती जाती है
तोह कभी उलझी हुई राहों को सुलझाती है
ज़िन्दगी..
तेरी मेरी कही-अनकही कहानिया
हर रंग रूप में दिखलाती है
ज़िन्दगी...
कभी कभी खामोश हो जाती है....
कभी कभी खामोश हो जाती है....
-दीक्षा शर्मा
(महाराजा अग्रसेन कॉलेज,
दिल्ली विश्विद्यालय)
दिल्ली विश्विद्यालय)
No comments:
Post a Comment